युवक की हत्या पर बवाल, राहुल बोले: “संविधान नहीं, भीड़ चला रही है देश!”

अजमल शाह
अजमल शाह

उत्तर प्रदेश के रायबरेली ज़िले में एक दलित युवक हरिओम वाल्मीकि की भीड़ द्वारा पीट-पीटकर हत्या के बाद राजनीतिक और सामाजिक हलकों में भारी आक्रोश देखा जा रहा है।

इस घटना को लेकर लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने एक संयुक्त बयान जारी किया है और इसे “इंसानियत, संविधान और न्याय की हत्या” करार दिया है।

राहुल गांधी: “भारत में कमजोरों की ज़िंदगी सस्ती समझी जा रही है”

राहुल गांधी ने बयान में कहा:

“हरिओम वाल्मीकि की निर्मम हत्या सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि इंसानियत, संविधान और न्याय की हत्या है।
भारत में आज दलित, आदिवासी, मुसलमान, पिछड़े और ग़रीब — हर उस व्यक्ति को निशाना बनाया जा रहा है जिसकी आवाज़ कमजोर है।”

उन्होंने देश में बढ़ती भीड़तंत्र (Mobocracy) की मानसिकता पर चिंता जताई और कहा:

“आज संविधान की जगह बुलडोज़र ने ले ली है, और इंसाफ़ की जगह डर ने। भारत का भविष्य समानता और मानवता पर टिका है — यह देश चलेगा संविधान से, भीड़ की सनक से नहीं।”

खड़गे ने कहा: “यह संविधान का अपमान है, समाज पर कलंक है”

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी इस घटना की कड़ी निंदा करते हुए कहा:

“रायबरेली में जो हुआ, वह इस देश के संविधान के प्रति घोर अपराध है। यह दलित समुदाय के प्रति अपराध है, और पूरे समाज पर कलंक है।”

उन्होंने इसे “संविधान विरोधी मानसिकता” की उपज बताया और मांग की कि दोषियों पर तत्काल और कठोर कार्रवाई हो।

पुलिस की कार्रवाई: 5 आरोपी गिरफ़्तार, बाकी की तलाश जारी

ऊंचाहार थाना क्षेत्र की पुलिस ने पुष्टि की कि घटना में शामिल पांच लोगों को गिरफ्तार कर न्यायिक अभिरक्षा में भेजा गया है।
पुलिस के अनुसार:

“हरिओम को कुछ लोगों ने चोरी के संदेह में पकड़कर पीटना शुरू किया, जिससे उसकी मौत हो गई। अन्य अभियुक्तों की पहचान कर ली गई है और गिरफ्तारी जल्द होगी।”

क्या यह सिर्फ कानून-व्यवस्था का मामला है?

इस घटना ने एक बार फिर देश में दलितों पर होने वाली हिंसा, भीड़तंत्र, और सामाजिक असमानता जैसे गंभीर सवालों को उजागर किया है।

क्या ऐसे मामलों में भीड़ को “लोकल जज” बनने का हक है?

क्या जाति आधारित हिंसा को अब भी “आम अपराध” समझा जाना चाहिए?

यह सिर्फ एक हत्या नहीं — यह हमारे लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों की परीक्षा है।

हरिओम वाल्मीकि की हत्या ने एक बार फिर दिखाया कि संविधान की किताबें हाथ में हों, लेकिन ज़मीन पर उसका पालन तभी होगा जब शासन, समाज और सिस्टम एकजुट होकर खड़े हों।

देश तभी चलेगा संविधान से – भीड़ की सनक से नहीं।

अगर टैरिफ़ ना होते तो भारत-पाकिस्तान के बीच न्यूक्लियर युद्ध होता!

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